पारिस्थितिक तंत्र में मानव का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ! अगर हम खाध
श्रृंखला (Food Chain) को दृष्टि में रखते हुए मानव का स्थान एक परिस्थितिक
तंत्र में हम देखे तो पाएंगे की मनुष्य प्रथम एवं द्धितीय श्रेणियों का
उपभोक्ता है ! जैसा की हम जानते है , मछली जो तलाबीय परिस्थितिक तंत्र में
खाध श्रृंखला के शिखर पर है, मासाहारी मनुष्यों के लिए भोजन का कार्य करती
है !
मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति में क्रियाशील अनेक पारिस्थितिक तंत्रों को बहुत अधिक हानि पंहुचाई है ! धीरे - धीरे मनुष्यों द्वारा बहुत से वनों को काटा जा रहा है जिसमे न केवल उत्पादक , अपितु विभिन्न श्रेणियों के उपभोक्ता भी नष्ट होते जा रहे है ! यही कारण है की आज अनेक प्रकार के पक्षियों एवं जन्तुओ की संख्या बहुत कम हो गई है ! अब भी प्रकृति में जो जंतु एवं पक्षी बच गए है उसका कारण यह है की उन जीवो का खाध जाल (Food Web) काफी विस्तृत है !
इसके अतिरिक्त मनुष्य ने अपने ही सुविधाओ के लिए अनेक कारखाने एवं मिले खोली है जिनसे दूषित गैस एवं अन्य वस्तुए निरंतर निकलती रहती है जो वातावरण को प्रदूषित करती है ! कारखानों के अपशिष्ट पदार्थ (Waste Products) नदियों में गिराए जाते है जिससे जलीय प्रस्थितिक तंत्र को बहुत हानि पहुचती है !
लकड़ी एवं अन्य कार्यो के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है ! इसके फलस्वरूप जलग्रहण क्षेत्रो तथा मैदानों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया है ! इसके कारण आने वन्य प्राणी एवं दुर्लभ पौधे नष्ट होते जा रहे है और वनों की खाध सृंखला में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ! चुकिं इस जैवमंडल में सबसे अधिक विकसित का सर्वोच्च जंतु मनुष्य ही है ! अतः पारिस्थितिक तंत्र के प्रत्येक घटक के साथ उसका परस्पर सम्बन्ध है ! मानव आबादी में होने वाली बेतहाशा वृद्धि से प्राकृतिक संसधानो का अत्यधिक दोहन हो रहा है जिससे पर्यावरण में असंतुलन होता जा रहा है ! अगर यही क्रम चलता रहा तो भयंकर दुष्परिणाम के लिए हमें सचेत रहना होगा ! इसलिए हमारा यह सम्मलित प्रयास होना चाहिए कि वातावरण (जल मृदा एवं वायुमंडल ) अत्यंत स्वच्छ रहे एवं इनके जीविय तथा अजीवीय तत्वों के बीच संतुलन बना रहे !
मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति में क्रियाशील अनेक पारिस्थितिक तंत्रों को बहुत अधिक हानि पंहुचाई है ! धीरे - धीरे मनुष्यों द्वारा बहुत से वनों को काटा जा रहा है जिसमे न केवल उत्पादक , अपितु विभिन्न श्रेणियों के उपभोक्ता भी नष्ट होते जा रहे है ! यही कारण है की आज अनेक प्रकार के पक्षियों एवं जन्तुओ की संख्या बहुत कम हो गई है ! अब भी प्रकृति में जो जंतु एवं पक्षी बच गए है उसका कारण यह है की उन जीवो का खाध जाल (Food Web) काफी विस्तृत है !
इसके अतिरिक्त मनुष्य ने अपने ही सुविधाओ के लिए अनेक कारखाने एवं मिले खोली है जिनसे दूषित गैस एवं अन्य वस्तुए निरंतर निकलती रहती है जो वातावरण को प्रदूषित करती है ! कारखानों के अपशिष्ट पदार्थ (Waste Products) नदियों में गिराए जाते है जिससे जलीय प्रस्थितिक तंत्र को बहुत हानि पहुचती है !
लकड़ी एवं अन्य कार्यो के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है ! इसके फलस्वरूप जलग्रहण क्षेत्रो तथा मैदानों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया है ! इसके कारण आने वन्य प्राणी एवं दुर्लभ पौधे नष्ट होते जा रहे है और वनों की खाध सृंखला में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ! चुकिं इस जैवमंडल में सबसे अधिक विकसित का सर्वोच्च जंतु मनुष्य ही है ! अतः पारिस्थितिक तंत्र के प्रत्येक घटक के साथ उसका परस्पर सम्बन्ध है ! मानव आबादी में होने वाली बेतहाशा वृद्धि से प्राकृतिक संसधानो का अत्यधिक दोहन हो रहा है जिससे पर्यावरण में असंतुलन होता जा रहा है ! अगर यही क्रम चलता रहा तो भयंकर दुष्परिणाम के लिए हमें सचेत रहना होगा ! इसलिए हमारा यह सम्मलित प्रयास होना चाहिए कि वातावरण (जल मृदा एवं वायुमंडल ) अत्यंत स्वच्छ रहे एवं इनके जीविय तथा अजीवीय तत्वों के बीच संतुलन बना रहे !
No comments:
Post a Comment